Janam dhari jo na kiya satsang Lyrics :
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जन्म धरि जो न किया सत्संग।
ताको केवल पशु करि मानो, यदपि मनुष का अंग। टेक
करत अहार निद्रा भय मैथुन, लाग्यो विषय सुरंग।
वामें अजहुँ न चेत्यो मूरख, काल करेगा भंग। १
काह भयो पीताम्बर पहिरे, चढ़े कु हस्ति तुरंग।
वामें काह बड़ाई देखी, फूल्यो हृदय उमंग। २
निर्मल चित्त करि कभी न नहायो, संत स्वरूपी गंग।
कहैं कबीर नर क्यों करि पावै, पूरण रूप अभंग। ३
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