Aatam Anubhav Sukh Ki, Ka Koi Bhoojai Baat Lyrics :
_________________________________________________________________
आतम अनुभव सुख की, का कोई बूझै बात।
कै जो कोई जानई, कै अपनो ही गात।।
आतम अनुभव जब भयो, तब नहीं हर्ष विषाद।
चित दीप सम है रहयो, तजि करि बाद बिबाद।।
कंचन तजना सहज है, सहज त्रिया का नेह।
मान बड़ाई ईरशा, दुरलभ तजनी येह।।
माया तजी तो क्या भया, मान तजा नहीं जाय।
मान बड़े मुनिवर गले, मान सबन को खाय।।
कबीर सोया क्या करै, जागि के जपो दयार।
एक दिन है सोवना, लम्बे पाँव पसार।।
कबीर सोया क्या करै, उठि न भजो भगवान।
जमघर जब लै जायँगे, पड़ा रहेगा म्यान।।
कबीर सोया क्या करै, काहे न देखै जागि।
जा के संग तें बीछुरा, ताहि के सँग लागि।।
नींद निसानी मौत की, उठ कबीरा जागु।
और रसायन छाडि़ कै, नाम रसायन लागु।।
आदि नाम निज सार है, बूझि लेहु सो हंस।
जिन जान्यो निज नाम को, अमर भयो सो बंस।।
आदि नाम जो गुप्त जप, बूझै बिरला कोय।
राम नाम सब कोइ कहै, नाम न चीन्है कोय।।
जो जन होइहै जौहरी, रतन लेहि बिलगाय।
सोहं सोहं जपि मुआ, मिथ्या जनम गँवाय।।
सभी रसायन हम करी, नाहिं नाम सम कोय।
रंचक घट में संचरै, सब तन कंचन होय।।
जबहिं नाम हिरदे धरा, भया पाप का नास।
मानो चिनगी आग की, परी पुरानी घास।।
पूँजी मेरी नाम है, जा तें सदा निहाल।
कबीर गरजै पुरूष बल, चोरी करै न काल।।
ज्ञान दीप परकास करि, भीतर भवन जराय।
तहाँ सुमिर सतनाम को, सहज समाधि लगाय।।
एक नाम को जानि करि, दूजा देइ बहाय।
तीरथ ब्रत जप तप नहीं, सतगुरु चरन समाय।।
_________________________________________________________________