Chadar ho gayi bahut purani, ab to soch samajh abhimaani Lyrics :
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चादर हो गई बहुत पुरानी, अब तो सोच समझ अभिमानी। टेक
अजब जुलाहा चादर बीनी, सूत करम की तानी।
सुरत निरति का भरना दीनी, तब सबके मन मानी। १
मैले दाग परे पापन के, विषयन में लपटानी।
ज्ञान का साबुन लाय न धोया, सतसंगति का पानी। २
भई खराब गई अब सारी, लोभ मोह में सानी।
सारी उमर ओढ़ते बीती, भली बुरी नहिं जानी। ३
शंका मानि जान जिय अपने, है यह वस्तु बिरानी।
कहैं कबीर यहि राखु यतन से, ये फिर हाथ न आनी। ४
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