Jag so preeti na keejiyey, mohey mann moora Lyrics :
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जग सो प्रीति न कीजिये, मोहे मन मूरा।
स्वाद हेत लिपटा रहै, निकसे कोई सूरा । १
एक कनक अरु कामिनी, जग में बड़ फंदा।
इन पे जो न बंधावई, ताका मैं बंदा । २
देह धरै इन माँहि बास, कहु कैसे छूटे।
सीव भये ते उबरे, जीवन ते लूटै । ३
एक एक सूं मिलि रह्या, तिनहिं सचु पाया।
प्रेम मगन लौलीन मन, सो बहुरि न आया। ४
कहैं कबीर निहचल भया, निरभै पद पाया।
संसय तो सबही गया, सतगुरु समझाया। ५
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