Kahe Kabir Tu Sadhu Guru Seyi Le, Daya Ke Takht Par Baith Bhai Lyrics :
_________________________________________________________________
कहैं कबीर तू साधु गुरु सेइ ले, दया के तख़्त पर बैठ भाई। १
ग्यान के महल में सकल सुख साहिबी, साध संगति मिले भेद पाई। २
भेद पाये बिना भई भर्म भागे नहीं, भर्म जंजाल धरि काल खाई। ३
साँच और झूठ को परखि तहक़ीक़ करि, संतजन जौहरी भला भाई। ४
प्रगट परतच्छ है साँच सोइ जानिये, दृष्टि ना परै सो झूठ झाँई।५
बड़ी मरजाद पाखंड की जगत में, साँच के कहत ही कलह होई। ६
चीन्हि साहिब परै काज तबही सरै, परम आनंद बड़ भाग सोई। ७
सिफत बहुतै सुनी अजब दुलहा बना, बिरहनी बिरह गन बहुत गाई। ८
दरस बिन परस बिन आस पुजै नहीं, नीर बिन प्यास कबहुँ न जाई| 9
नीर नियरे हुता प्यास भइ दूर की, मर्म जाने नहीं जुगत कोई। 10
कांच के महल में भूंसि कुत्ता मरा, आपनी छाँह को आप धाई। 11
देखु दिबि दृष्टि यह सृष्टि जहँडे गई, मडि रहा धोख सब घट्ट माहीं। 12
मरकट मूंठि गहि आप छोड़े नहीं, फँसि रहा मूढ़ जम फाँस माही। 13
मरकट मूँठि गहि आप छोड़े नहीं, फँसि रहा मूढ़ जम फाँस माही। 14
देखि के केहरी आपनी प्रतिमा, पड़ा है कूप में प्रान खोई। 15
कहैं कबीर यह भर्म है दूसरा, मर्म जानै नहीं अंध लोई। 16
करतूत बहुतै कहै रहनि में ना रहै, कहै ज्यों रहै त्यों संत सोई। 17
_________________________________________________________________