Kaya Nagar Anoop Dekh Mann Bhaavhi Lyrics :
_________________________________________________________________
काया नगर अनूप देख मन भावहीं।
सखी बसत तहँ पाँच, कोई लख पावहीं। १
पाँचन संग पचीस, तीन अरु देखहीं।
गुन तीनों परचंड, सोई निज खेलहीं॥ २
तैंतीसों बड़ जोर, तो दुंद मचावहीं।
मन संगम मन लाग, रैन दिन धावहीं। ३
काम क्रोध हंकार, लोभ मन भावहीं।
यह मनुवा बड़जोर, हाथ नहिं आवहीं॥ ४
मन जीते बिनु मुक्ति, कबहुँ नहीं पावहीं।
जे नर भक्ति बिहीन, सदा दुःख पावहीं॥ ५
क्षमा शील संतोष, सुमति हिय राखहीं।
कुमति कुसंग निवार, सत्य मुख भाखहीं। ६
गुरु चरणों चितलाय, राम रस पीवहीं।
सो पहुँचे सत लोक, जुगों जुग जीवहीं। ७
वह घर अगम अपार, तो आप बिराजहीं।
बहु सोभा परकास, रूप अति छाजहीं। ८
कहैं कबीर बिचार, तो मान निहोर हो।
समझ के उतरो पार, सब्द गहु मोर हो। ९
_________________________________________________________________