हे..ए री सखी में अंग
अंग आज रंग डार दूँ
अपने जी से प्रेम रंग
कैसे मैं उतार दूँ
ओ ए री सखी
तेरे बिना कहीं भी ना
व्याकुल मन लागे…
बिरहन सूर ताल साज
आज तेरे आगे…
नैनन को चैन नहीं
रैन रैन जागे
इक पल में टूट जाए
सांस के ये धागे
तू जो मुंह फेरे सखी
देह प्राण त्यागे
पल पल तू देख मुझे
ज़िंदगी गुजार दूँ
ए री सखी में अंग
अंग आज रंग डार दूँ
अपने जी से प्रेम रंग
कैसे मैं उतार दूँ
ओ ए री सखी
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